राजदंड बिना सब सूना, (व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा)
विपक्ष वालों‚ ऐसी भी क्या तंग–दिली। संसद की नई बिल्डिंग बनवाने के लिए न सही‚ नई बिल्डिंग का उद्घाटन करने तक का सारा बोझ अकेले ही उठाने के लिए भी न सही‚ पर कम-से-कम नये इंडिया को उसके पचहत्तर साल से खोए राजदंड से दोबारा मिलाने के लिए तो‚ थैंक यू मोदी जी‚ बनता ही है। थैंक यू भी बड्ड़ा वाला। कोरोना के टीके वाले‚ पांच किलो मुफ्त अनाज के फोटोयुक्त थैले वाले‚ थैंक यू से भी बड़्ड़ा वाला थैंक यू। थैंक यू मोदी जी‚ कम से कम लोक सभा वाली संसद को डंडायुक्त कराने के लिए!
देखा‚ इस मामले में भी गलती नेहरू जी की ही निकली। राजदंड तक संभाल कर नहीं रख पाए। सुना है कि घर पर रखकर ही भूल गए। इत्ती लापरवाहीॽ अब मोदी जी कुछ बोलेंगे, तो विरोधी बोलेंगे कि नेहरू जी के खिलाफ बोलता है। अरे जब राजदंड संभालने की कुव्वत ही नहीं थी‚ तो उचक कर कुर्सी पर बैठने की क्या जरूरत थी। नहीं बैठते। सरदार पटेल को बैठ जाने देते; फिर देश भी देखता कि राजदंड को संभालना क्या होता है! शुरू से ही राज का दंड चलता रहता, तो राष्ट्र को भी आदत बनी रहती। राज गोरों वाले की जगह भूरों वाला हो जाता‚ पर दंड भी वही रहता और उसका प्रहार झेलने वाली पीठ भी। मोदी जी को कम से कम राजदंड की पचहत्तर साल पुरानी परंपरा‚ खोजकर पुनर्जीवित करने की मेहनत तो नहीं करनी पड़ती। वैसे हमें तो शक है कि नेहरू जी वाकई राजदंड को रखकर यूं ही भूल गए होंगे। जरूर नेहरू जी ने जान–बूझकर राजदंड की उपेक्षा की होगी। सर्वोच्च दक्षिणी ब्राह्मणों के कंठों से निकले मंत्रों से सिंचित जो था। सनातन–विरोधी नेहरू ने लिया और माथे से लगाने की जगह‚ किसी कोने में डलवा दिया। वर्ना राजदंड जैसी राज के लिए जरूरी चीज को‚ अजायबघर में कौन डलवाता है‚ जी!
वैसे मोदी जी के लिए‚ एक थैंक यू नये इंडिया का इतिहास काफी शॉर्ट कराने के लिए भी बनता है। राजदंड चोला राजाओं के पास था। उनसे अंगरेजों के पास आया। और अब मोदी जी के पास। मुगलों के पास कभी राजदंड तो था ही नहीं। यानी मुगल राज तो फेक न्यूज थी‚ जिसे अब इतिहास की किताबों से हटवाया जा रहा है। और नेहरू का राज!
*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*