म प्र और छ ग के बीच पेंशनरी दायित्वों का बंटवारा नहीं
■ *22 वर्षो में छत्तीसगढ़ को अब तक अरबों का नुकसान*
*■मध्यप्रदेश जानबूझकर बटवारा टालकर फायदे में और छत्तीसगढ़ को अनजाने में अरबो का नुकसान*
*■ ब्यूरोक्रेसी पर लापरवाही का आरोप*
राज्य के पेंशनरों की समस्याओं को लेकर राज्य कर्मचारी संघ के पूर्व प्रांताध्यक्ष,भारतीय राज्य पेंशनर्स महासंघ के राष्ट्रीय महामंत्री एवं छत्तीसगढ़ राज्य सँयुक्त पेंशनर्स फेडरेशन के अध्यक्ष वीरेन्द्र नामदेव ने खुलासा किया है कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49 को विलोपित कर पेंशनरी दायित्व का बंटवारा मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच आपस मे नही होने के कारण छत्तीसगढ़ को राज्य पुनर्गठन के बाद इन 22वर्षो में अरबों रुपये का नुकसान हो चुका है और यह घाटा आगे भी जारी रहेगा। सरकार को इस वित्तीय संकट के दौर में तुरन्त संज्ञान में लेकर पेंसनरी दायित्व के बटवारे के लिए गंभीरता से कार्यवाही करना चाहिए।
उन्होंने आगे बताया है कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम के प्रावधानों के तहत 74 प्रतिशत राशि का भुगतान मध्यप्रदेश सरकार को और 26 प्रतिशत राशि का भुगतान छत्तीसगढ़ सरकार को मध्यप्रदेश के 05 लाख और छत्तीसगढ़ के 01लाख पेंशनरों इसतरह कुल 6 लाख से अधिक पेंशनर और परिवारिक पेंशनरों मिलकर करना होता है इसके लिए दोनो राज्य सरकारों में आपसी सहमति नही होने पर कोई भी भुगतान करना सम्भव नही हैं और *इसी भुगतान के खेल में छत्तीसगढ़ सरकार को इन 20 वर्षो में अरबो रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है। जो लगातार जारी हैं।*
*उन्होनें उदाहरण देते हुये बताया है कि प्रत्येक पेंशनर को नियमानुसार 74% राशि मध्यप्रदेश द्वारा और 26%राशि छत्तीसगढ़ द्वारा दिया जाना है अर्थात 100 रुपये में 6 लाख पेंशनर को मध्यप्रदेश 74%और इन्ही सभी पेंशनरों को 26% छत्तीसगढ़ सरकार के खजाने से देने पड़ेंगे। हिसाब लगाने पर इसमें मध्यप्रदेश को 44 करोड़ 44 लाख व्यय करना पड़ेगा और छत्तीसगढ़ सरकार को 1करोड़ 56 लाख व्यय होगा।परन्तु यदि मध्यप्रदेश अपने 5 लाख पेंशनर को 100 % भुगतान करता है उसे 5 करोड़ और छत्तीसगढ़ सरकार अपने 1 लाख पेंशनरों के केवल 1 करोड़ खर्च करने होंगे। इसतरह केवल 100 रुपये के भुगतान मे ही छत्तीसगढ़ शासन को 56 लाख रुपए का नुकसान हो रहा है। इसीलिए अपने राज्य के वित्तीय फायदे को ध्यान में रखकर मध्यप्रदेश सरकार जानबूझकर 22 साल से पेंशनरी दायित्व के विभाजन को टालते आ रही है।*
छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश आपसी सहमति के चलते पेंशनरों के साथ खिलवाड़ कर रहे है और 22 वर्षो से लंबित इस दोनो मामले को मध्यप्रदेश शासन जानबूझकर टाल रही हैं और छत्तीसगढ़ शासन इसे नही समझ पा रही हैं और जबरदस्त वित्तीय नुकसान उठा रही हैं।
उन्होंने आगे बताया है कि पेंशनरों के मामले में मध्यप्रदेश सरकार पर आर्थिक निर्भरता के बाध्यता के लिये ब्यूरोक्रेसी की लापरवाही जम्मेदार है और ब्यूरोक्रेसी द्वारा राज्य विभाजन के इन 22 वर्षो में मध्यप्रदेश के लगभग 5 लाख पेसनरो को छत्तीसगढ़ सरकार के खजाने से भुगतान में अरबों रुपये के हुए नुकसान से अंधेरे में रखने को आश्चर्य जनक निरूपित किया है। उन्होंने पेंशनरों की आर्थिक दुर्दशा पर ब्यूरोक्रेसी के साथ साथ सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनो को चिन्ता नही होने को दुर्भाग्यजनक जताते हुये उन्होंने छत्तीसगढ़ निर्माण के 22 वर्षो बाद भी राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49 को हटाने में आज तक ध्यान नही देने पर चिन्ता जाहिर किया है। इन सभी मामलों पर ब्यूरोक्रेसी ही मुख्यरूप से जिम्मेदार है और इसलिए जिम्मेदारी तय कर छत्तीसगढ़ सरकार को उन पर कार्यवाही करनी चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह के मामलों पर पुनरावृत्ति न हो।
जारी विज्ञप्ति में भारतीय राज्य पेंशनर्स महासंघ के राष्ट्रीय महामंत्री एवं छत्तीसगढ़ राज्य संयुक्त पेंशनर्स फेडरेशन के अध्यक्ष वीरेन्द्र नामदेव के साथ फेडरेशन के घटक संघ से प्रगतिशील पेंशनर कल्याण संघ के प्रांताध्यक्ष आर पी शर्मा, पेंशनर एसोसिएशन छत्तीसगढ़ के प्रांताध्यक्ष यशवन्त देवान तथा भारतीय राज्य पेंशनर्स महासंघ छत्तीसगढ़ प्रदेश के प्रांताध्यक्ष जे पी मिश्रा आदि ने आगे बताया है कि दोनो राज्यो के बीच पेंशनरी दायित्व का बंटवारा नही होने से पेंशनरों को मिलनेवाली आर्थिक मामले मध्यप्रदेश के सहमति के बिना लटकी हुई है,चाहे महंगाई राहत का मामला हो या छटवें और सातवें वेतनमानों का एरियर हो अथवा सेवानिवृत्त उपादान की रकम, ये सभी दोनो राज्यों में आपसी सहमति पर होने से भुगतान होने में हमेशा लम्बित रहता है। जिसके कारण पेंशनर और परिवार पेंशनर आर्थिक और सामाजिक शोषण के शिकार बन रहे हैं।
उन्होंने आगे बताया है कि पेंशनरों की समस्याओं पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनो की बेरुखी है, क्योंकि जब भाजपा की सरकार रही तो उन्हें बार बार अवगत कराने के बाद भी इस पर ध्यान नहीं दिया गया और अब लगभग 4 साल से राज्य के सत्ता में काबिज कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री और जिम्मेदार अधिकारियों से लगातार चर्चा, ज्ञापन और धरना,प्रदर्शन आदि के माध्यम अवगत कराने बाद भी स्थिति जस के तस बनी हुई है।
वीरेन्द्र नामदेव
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