केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह के हरियाणा के गुरुग्राम में “NFTs, AI और Metaverse के युग में अपराध और सुरक्षा पर G20 सम्मेलन” के उद्घाटन सत्र को संबोधन का मूल पाठ
New Delhi (IMNB). प्रतिष्ठित प्रतिनिधियों, सम्मानित अतिथियों !… नमस्कार
मैं, भारत में आप सभी का स्वागत करते हुए अपनी बात शुरू करता हूँ । उस भूमि पर आपका स्वागत है, जहाँ ‘विरासत’ और ‘टेक्नोलॉजी’ ड्रिवेन डेवलपमेंट साथ-साथ चली हैं।
“नॉन-फंजिबल टोकन (NFT), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मेटावर्स के युग में क्राइम और सिक्यूरिटी” विषय पर इस महत्त्वपूर्ण G-20 सम्मेलन में, आज मेरे साथ शामिल होने के लिए आपका धन्यवाद..
इस सम्मानित सभा में, मैं, तेजी से जुड़ रही दुनिया में
साइबर रेज़िलिएन्स स्थापित करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर सहयोग की आवश्यकता पर जोर देना चाहूँगा।
आप सभी जानते होंगे कि इस वर्ष भारत G-20 की अध्यक्षता कर रहा है। भारत का G-20 अध्यक्षता का विषय – “वसुधैव कुटुम्बकम्” अर्थात “वन अर्थ – वन फैमिली – वन फ्यूचर” है, जो हमारी पुरानी सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है।
यह वाक्य शायद आज की ‘डिजिटल दुनिया’ के लिए सबसे अधिक रेलेवेंट है।
टेक्नोलॉजी सभी कन्वेंशनल ज्योग्राफिकल, पोलिटिकल तथा आर्थिक सीमाओं को तोड़कर पार पहुँच चुकी है । आज हम एक बड़े ग्लोबल डिजिटल विलेज में रहते हैं।
हालाँकि, टेक्नोलॉजी मानव, कम्युनिटी और देशों को और करीब लाने वाला एक पॉजिटिव डेवलपमेंट है, लेकिन कुछ एंटी-सोशल एलिमेंट्स तथा स्वार्थी वैश्विक ताकतें भी हैं, जो नागरिकों और सरकारों को, आर्थिक तथा सामाजिक नुकसान पहुँचाने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही हैं।
इसलिए, यह सम्मेलन अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि यह डिजिटल दुनिया को सभी के लिए सुरक्षित बनाने की, कोऑर्डिनेटेड एक्शन की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक पहल हो सकती है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का मानना है कि, “साइबर सुरक्षा अब केवल डिजिटल दुनिया तक ही सीमित नहीं है। यह एक राष्ट्रीय सुरक्षा – वैश्विक सुरक्षा का मामला बन गया है।”
प्रधानमंत्री मोदी जी ने टेक्नोलॉजी के ह्यूमेन आस्पेक्ट पर जोर दिया है। उन्होंने टेक्नोलॉजी के उपयोग में ‘कम्पैशन’ और ‘सेंसिटिविटी’ सुनिश्चित करने के लिए “इन्टरनेट ऑफ़ थिंग्स” को “इमोशन्स ऑफ़ थिंग्स” के साथ जोड़ा है।
मोदी जी के नेतृत्व में, भारत जमीनी स्तर पर उभरती टेक्नोलॉजीज को अपनाने में अग्रणी रहा है। हमारा उद्देश्य है कि समाज के सभी वर्गों के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी को अधिक सुलभ और किफायती बनाना है।
- आज 840 मिलियन भारतीयों की ऑनलाइन मौजूदगी है, और 2025 तक और 400 मिलियन भारतीय डिजिटल दुनिया में प्रवेश करेंगे।
- 9 वर्षों में इन्टरनेट कनेक्शन में 250% की बढ़ोतरी हुई है।
- प्रति GB डाटा की लागत में 96% कमी आई है।
- प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत :
- 500 मिलियन नए बैंक खाते खोले गए हैं; और
- 330 मिलियन ‘रुपे डेबिट कार्ड’ वितरित किये गए हैं।
- भारत 2022 में 90 मिलियन लेनदेन के साथ वैश्विक डिजिटल भुगतान में अग्रणी रहा है।
- अब तक भारत में 35 ट्रिलियन रुपये के UPI ट्रांजेक्शन हुए हैं।
- वैश्विक डिजिटल भुगतान का 46% भारत में भुगतान हुआ है।
- 2017-18 से लेन-देन की मात्रा में 50 गुना बढ़ोत्तरी हुई है।
- जनधन-आधार-मोबाइल से डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर किये गए हैं।
- 1.38 बिलियन आधार – डिजिटल आइडेंटिटी जनरेट किये गए हैं।
- 52 मंत्रालयों में 300 से अधिक योजनाओं को कवर करते हुए 300 मिलियन रुपए की राशि सीधे बैंक खातों में पहुँचाई गई है।
- डीजीलॉकर में लगभग 6 बिलियन डाक्यूमेंट्स स्टोर्ड हैं।
- कोविन एप्प के माध्यम से 2.2 बिलियन कोविड वैक्सीनेशन किये जा चुके हैं।
- भारतनेट के तहत 6 हंड्रेड थाउजेंड किलोमीटर की ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाई जा चुकी है।
- नए युग के शासन के लिए एकीकृत मोबाइल एप्लिकेशन उमंग एप्प लाया गया, जिसमें 53 मिलियन रजिस्ट्रेशन्स हैं ।
सेवाओं की डिजिटल डिलीवरी के इनिशिएटिव्स ने, एक दशक में भारत को एक ‘डिजिटल राष्ट्र’ में बदल दिया है।
लेकिन साथ ही साइबर खतरों की संभावनाएँ भी बढ़ी हैं। इन्टरपोल की वर्ष 2022 की ‘ग्लोबल ट्रेंड समरी रिपोर्ट’ के अनुसार रैनसमवेयर, फिशिंग, ऑनलाइन घोटाले, ऑनलाइन बाल यौन-शोषण और हैकिंग जैसे साइबर अपराध की कुछ प्रवृतियाँ विश्वभर में गंभीर खतरे की स्थिति पैदा कर रही हैं। ऐसी संभावना है कि भविष्य में ये साइबर अपराध कई गुना और बढ़ेंगे।
इस कॉन्टेक्स्ट में, यह सम्मेलन, G-20 प्रेसीडेंसी की एक नई और अनूठी पहल है। G-20 में साइबर सुरक्षा पर यह पहला सम्मेलन है।
G-20 ने अब तक आर्थिक दृष्टिकोण से डिजिटल परिवर्तन और डेटा-फ्लो पर ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन क्राइम और सिक्यूरिटी आस्पेक्ट्स को समझना और समाधान निकालना अब बेहद आवश्यक है।
हमारा प्रयास है कि NFT, AI, मेटावर्स तथा अन्य इमर्जिंग टेक्नोलॉजी के युग में कोऑर्डिनेटेड और कोऑपरेटिव तरीके से नए और उभरते खतरों के लिए समय पर प्रतिक्रिया देकर हमें आगे रहना है।
G-20 के मंच पर साइबर सिक्यूरिटी पर अधिक ध्यान दिए जाने से, अहम ‘इनफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर’ और ‘डिजिटल पब्लिक प्लेटफार्मों’ की सुरक्षा और संपूर्णता सुनिश्चित करने में सकारात्मक योगदान प्राप्त हो सकता है।
G-20 के मंच पर साइबर सिक्यूरिटी और साइबर क्राइम पर विचार-विमर्श करने से ‘इंटेलिजेंस और इनफॉर्मेशन शेयरिंग नेटवर्क’ के विकास में मदद मिलेगी और इस क्षेत्र में ‘ग्लोबल कोऑपरेशन’ को बल मिलेगा।
इस सम्मेलन का उद्देश्य डिजिटल पब्लिक गुड्स और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर को सशक्त एवं सुरक्षित बनाने और टेक्नोलॉजी की शक्ति का बेहतर उपयोग करने के लिए एक सुरक्षित और सक्षम अंतरराष्ट्रीय ढाँचे को बढ़ावा देना है।
मुझे विश्वास है कि दो दिवसीय कॉन्फ्रेंस के 6 सत्रों में इन्टरनेट गवर्नेंस, डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा, डिजिटल ऑनरशिप से संबधित लीगल तथा रेगुलेटरी इशूज, AI का रिस्पोंसिबल यूज़ तथा डार्क नेट जैसे विषयों में इंटरनेशनल कोऑपरेशन फ्रेमवर्क पर सार्थक चर्चा होगी
मुझे ख़ुशी है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने तहे दिल से इस सम्मेलन का समर्थन किया है। इस सम्मलेन में G-20 सदस्यों के अलावा, 9 अतिथि देश, और 2 प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठन, इंटरपोल और यूएनओडीसी (UNODC) के साथ-साथ विभिन्न अंतरराष्ट्रीय वक्ता भी भाग ले रहे हैं।
मित्रों, इस डिजिटल युग के मद्देनजर, साइबर सिक्यूरिटी, ग्लोबल सिक्यूरिटी की एक जरूरी पहलू बन गई है, जिसके इकोनॉमिकल तथा जिओ-पॉलिटिकल प्रभावों पर पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है।
टेररिज्म, टेरर फाइनेंसिंग, रेडिकलाइजेशन, नार्को,
नार्को-टेरर लिंक्स, और मिस-इनफॉर्मेशन सहित नई और उभरती, पारंपरिक और गैर-पारंपरिक चुनौतियों से बेहतर ढंग से निपटने के लिए राष्ट्रों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की क्षमताओं को मजबूत बनाना आवश्यक है।
हमारी कन्वेंशनल सिक्यूरिटी चुनौतियों में ‘डायनामाइट से मेटावर्स’ और ‘हवाला से क्रिप्टो करेंसी’ का परिवर्तन दुनिया के देशों के लिए निश्चित ही चिंता का विषय है।
और हम सभी को, साथ में मिलकर, इसके खिलाफ साझी रणनीति तैयार करनी होगी।
टेररिस्ट हिंसा को अंजाम देने, युवाओं को रैडिकलाइज़ करने तथा वित्त संसाधन जुटाने के, नए तरीके खोज रहे हैं। वर्चुअल एसेट्स के रूप में नए तरीकों का उपयोग, आतंकवादियों द्वारा फाइनेंसियल ट्रांजैक्शन के लिए किया जा रहा है।
टेररिस्ट, अपनी पहचान छिपाने के लिए और रेडिकल मैटेरियल को फ़ैलाने के लिए डार्क-नेट का उपयोग कर रहे हैं ।
हमें डार्क-नेट पर चलने वाली इन गतिविधियों के पैटर्न को समझना होगा, और उसके उपाय भी ढूँढने होंगे । वर्चुअल एसेट्स माध्यमों के उपयोग पर नकेल कसने के लिए, एक
“मजबूत और कारगर ऑपरेशनल सिस्टम” की दिशा में, हमें एकरूपता से सोचना होगा।
मेटावर्स, जो कभी साइन्स फिक्शन था, अब वास्तविक दुनिया में कदम रख चुका है। मेटावर्स से आतंकवादी संगठनों के लिए मुख्य रूप से प्रचार, भर्ती और प्रशिक्षण के नए अवसर पैदा हो सकते हैं। इससे टेररिस्ट ऑर्गेनाईजेशन के लिए कमजोर मानसिकता वाले लोगों का चयन करना, उन्हें लक्ष्य बनाना और कमजोरियों के अनुरूप मैटेरियल तैयार करना आसान हो जाएगा।
मेटावर्स यूजर की पहचान की सच्ची नकल करने के अवसर भी पैदा करता है, जिसे “डीप-फेक” कहा जाता है।
व्यक्तियों के बारे में बेहतर बायोमेट्रिक जानकारी का उपयोग करके अपराधी यूजर का रूप धरने और उनकी पहचान चुराने में सक्षम हो जाएँगे।
साइबर अपराधियों द्वारा रैंसमवेयर हमलों, महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत डेटा की बिक्री, ऑनलाइन उत्पीड़न, बाल-शोषण से लेकर फर्जी समाचार और ‘टूलकिट‘ के साथ मिस-इनफॉर्मेशन कैंपेन जैसी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है ।
इसके साथ ही, क्रिटिकल इनफॉर्मेशन और फाइनेंसियल सिस्टम्स को स्ट्रेटेजिक लक्ष्य बनाने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है।
ऐसी गतिविधियाँ राष्ट्रीय चिंता के विषय हैं, क्योंकि, इनकी गतिविधियों का सीधा प्रभाव राष्ट्रीय सुरक्षा, कानून व्यवस्था, और अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।
ऐसे अपराधों को और अपराधियों को रोकना है,
तो कन्वेंशनल जियोग्राफिक बॉर्डर से ऊपर उठकर सोचना होगा और कार्य भी करना होगा।
डिजिटल युद्ध में टारगेट हमारे भौतिक संसाधन नहीं होते हैं, बल्कि हमारी ऑनलाइन कार्य करने की क्षमता को टारगेट किया जाता है। 10 मिनट के लिए भी ऑनलाइन नेटवर्क में व्यवधान घातक हो सकता है।
आज, दुनिया की सभी सरकारें गवर्नेंस और पब्लिक वेलफेयर में डिजिटल माध्यमों को प्रोत्साहन दे रही हैं। इस दिशा में आवश्यक है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर नागरिकों का विश्वास बना रहे। डिजिटल स्पेस में असुरक्षितता, नेशन-स्टेट की लेजिटिमेसी और संप्रभुता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
हमारा इन्टरनेट विज़न न तो राष्ट्र के अस्तित्व को संकट में डालने वाला अत्यधिक फ्रीडम का होना चाहिए, और न ही डिजिटल फ़ायरवॉल जैसे आइसोलेशनिस्ट स्ट्रक्चर का होना चाहिए।
भारत ने कुछ ऐसे ‘ओपन-एक्सेस डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर’ मॉडल खड़े किये हैं, जो कि आज विश्व में मिसाल बने हुए हैं। हमारा डिजिटल आइडेंटिटी का आधार मॉडल, रियल-टाइम फ़ास्ट पेमेंट का UPI मॉडल, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC), हेल्थ के क्षेत्र में ओपन हेल्थ सर्विस नेटवर्क, जैसे और भी मॉडल्स इसके उदाहरण हैं।
आज दुनिया को डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए एक नई व्यवस्था की जरूरत है, जो इनफॉर्मेशन और फाइनेंस के प्रवाह में मध्यस्थता करे। इससे दुनिया के देशों को अपने नागरिकों को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने में सुविधा होगी।
मित्रों, मैं सुरक्षा उपायों के बारे में भी बात करना चाहूँगा। दुनिया के कई देश साइबर अटैक के शिकार हुए हैं और यह खतरा दुनिया भर की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर मंडरा रही है।
विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2019-2023 के दौरान साइबर हमलों से दुनिया को लगभग 5.2 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता था। मेलिशियस थ्रेट एक्टर्स द्वारा क्रिप्टो करेंसी का उपयोग इसकी पहचान और रोकथाम को और जटिल बना देता है।
प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में भारत सरकार ने एक समान साइबर कार्यनीति की रूपरेखा तैयार करने, साइबर-अपराधों की रियल-टाइम रिपोर्टिंग, लॉ एन्फोर्समेंट एजेंसियों की कैपेसिटी बिल्डिंग, एनालिटिकल टूल्स डिजाइन करने, फॉरेंसिक प्रयोगशालाओं का एक राष्ट्रीय नेटवर्क स्थापित करने, साइबर हाइजीन सुनिश्चित करने, और हर नागरिक तक साइबर जागरूकता के प्रसार करने जैसे हर क्षेत्र में कार्य किया है।
अब देश के सभी पुलिस थानों में क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम (CCTNS) का कार्यान्वयन कर दिया गया है।
साइबर अपराध के विरुद्ध व्यापक जवाबी कार्यवाही सुनिश्चित करने हेतु भारत सरकार ने इंडियन साइबर-क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C) की स्थापना की है।
भारत सरकार ने ‘साइट्रेन‘ पोर्टल नामक एक विशाल ओपन ऑनलाइन ट्रेनिंग प्लेटफॉर्म का निर्माण भी किया गया है। शायद, साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में यह दुनिया का सबसे बड़ा ट्रेनिंग प्रोग्राम होगा।
एक सेफ एंड सिक्योर साइबर स्पेस सुनिश्चित करने हेतु मैं कुछ बिंदुओं पर इस सभा का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। मेरा आग्रह होगा कि इस सम्मेलन में आप इन बिन्दुओं पर अवश्य विचार करें –
- डिजिटल अपराधों को काउंटर करने के लिए बने सभी
देशों के कानूनों में एकरूपता लाने के प्रयास होने चाहिए । - साइबर अपराधों के बॉर्डर-लेस नेचर को ध्यान में रखते हुए, देशों के भिन्न-भिन्न कानूनों के तहत, रेस्पोंड करने की व्यवस्था, हमें खड़ी करनी होगी ।
- इस क्षेत्र में ग्लोबल कोऑपरेशन से साइबर सिक्यूरिटी बेंचमार्क्स, बेस्ट प्रैक्टिसेज, और रेगुलेशन में तालमेल बनाने में मदद होगी।
मैं, आशा करता हूँ कि, इस दिशा में यह सम्मेलन एक ठोस एक्शन-प्लान हमारे सामने रखेगा ।
- साइबर सिक्यूरिटी नीतियों में इंटीग्रेटेड और स्टेबल एप्रोच से इंटर-ओपेरबिलिटी में आसानी होगी, इनफॉर्मेशन शेयरिंग में ट्रस्ट बढ़ेगा, और एजेंसियों के प्रोटोकॉल और रिसोर्सेस गैप में कमी होगी।
- राष्ट्र के महत्त्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर को सुरक्षित बनाने के लिए सदस्य देशों के बीच उद्योग और शिक्षा जगत के सक्रिय समर्थन से रियल टाइम साइबर थ्रेट इंटेलिजेंस साझा करना समय की माँग है।
- साइबर घटनाओं की रिपोर्टिंग और उन पर कार्यवाही में सभी देशों की साइबर एजेंसियों में अधिक तालमेल होना चाहिए।
- शांतिपूर्ण, सुरक्षित, प्रतिरोधी और ओपन इनफॉर्मेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी वातावरण के निर्माण के लिए संयुक्त प्रयासों से सीमा पार साइबर अपराधों की जाँच में सहयोग आज अत्यंत आवश्यक है।
- इनफॉर्मेशन व कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के आपराधिक प्रयोग पर यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन के अनुरूप तेजी से
साक्ष्यों का संरक्षण, जाँच और सहयोग होना अनिवार्य है। - इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज के कारण उभरते खतरों से निपटने के लिए कंप्यूटर इमरजेंसी रेस्पोंस टीमों (सीईआरटी) को सुदृढ़ बनाना होगा।
- प्रभावी प्रिडिक्टिव – प्रिवेंटिव – प्रोटेक्टिव एंड रिकवरी एक्शन हेतु एक 24×7 साइबर सिक्यूरिटी मैकेनिज्म होना चाहिए।
- साइबर थ्रेट लैंडस्केप का स्वरूप राष्ट्रीय सीमाओं से पार तक फैल गया है, जिसके कारण साइबर क्राइम्स से प्रभावी रूप से लड़ने के लिए राष्ट्रों, संगठनों और स्टेकहोल्डरों द्वारा कोऑपरेशन और इनफॉर्मेशन का आदान-प्रदान करना आवश्यक हो गया है।
- रिस्पोंसिबल उपयोग सुनिश्चित करने के लिए ‘ट्रांसपेरेंट और अकाउंटेबल AI और इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज गवर्नेंस फ्रेमवर्क’ का निर्माण करने का समय आ गया है।
- डिजिटल करेंसी से लैस साइबर क्राइम में वृद्धि को देखते हुए राष्ट्रों के बीच एक ‘डेडिकेटेड कॉमन चैनल’ की आवश्यकता है, ताकि ऐसी वित्तीय अनियमितताओं को रोका जा सके।
- NFT प्लेटफॉर्मों की थर्ड-पार्टी वेरिफिकेशन से विश्वास बढ़ेगा और आपराधिक गतिविधियों पर रोक लगेगी।
अंत में, मैं फिर से इस बात पर जोर देना चाहता हूँ कि कोई भी देश या संगठन, अकेले साइबर खतरों का मुकाबला नहीं कर सकता है – इसके लिए एक संयुक्त मोर्चे की आवश्यकता है।
हमारे भविष्य ने हमें यह अवसर दिया है कि हम संवेदनशीलता के साथ टेक्नोलॉजी का उपयोग करने और सार्वजनिक सुरक्षा तथा संरक्षा सुनिश्चित करने की अपनी प्रतिबद्धता पर अटल रहें। हालाँकि, यह कार्य अकेले सरकारों द्वारा नहीं संभाला जा सकता है।
हमारा लक्ष्य ‘साइबर सक्सेस वर्ल्ड’ का निर्माण करना है, न कि ‘साइबर फेल्योर वर्ल्ड’ का।
साथ मिलकर, हम, सभी के लिए एक सुरक्षित और समृद्ध डिजिटल भविष्य सुनिश्चित करते हुए इन टेक्नोलॉजीज की क्षमता का उपयोग कर सकते हैं।
आइए, हम सहयोग करने, हमारे विचार साझा करने और अंतरराष्ट्रीय साझेदारी बनाने के इस अवसर का लाभ उठाएँ।
धन्यवाद !
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