वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी… बदला साय का मन ये क्या बोल गये रमन
गुटों में बंटी पार्टियां। जो किसी गुट से जुड़ा है वो सुरक्षित है। जो पार्टी से जुड़ा है वो कभी भी नकारा जा सकता है। पार्टी में रहने वाले गुटों मंे रहें तो ठीक, वरना गुटाधीशों की किरकिरी बने रहते हैं। न तवज्जो मिलती है, न पद, न सम्मान। यानि योग्यता का कोई मोल नहीं। केवल संबंधों का मोल है।
संत नेता शायद ऐसी शख्सियत को ही कहते हैं। उनका तपस्वी जीवन और साफ-सुथरी राजनीति पूरा प्रदेश जानता है। भाजपा में बड़े-बड़े पदों पर रहे। जब भाजपा में पटरी नहीं बैठी तो लंबी जद्दोजेहद के बाद उन्होंने कांग्रेस ज्वाईन कर ली।
साय का कांग्रेस प्रवेश चैंका गया
जाहिर तौर पर रमनसिंह ने तंज कसा है। नंदकुमार साय के औद्योगिक विकास निगम के अध्यक्ष बनने पर ये विचार सामने आए।
कुछ-कुछ ऐसा ही है
फड़नवीस और सिहदेव का मामला
भगवान कृष्ण ने कहा है कि ‘कभी रणभूमि मे पीछे हटना किसी नयी रणनीति का हिस्सा हो सकता है’। आमतौर पर ये कहा जाता है कि शेर हमला करने से पहले कभी कुछ कदम पीछे भी हटता है। सियासत में लंबे लक्ष्य के लिये तो कभी वक्त और जरूरत के हिसाब से कम पावर का पद भी स्वीकार कर लिया जाता है।
महाराष्ट्र में क्या हुआ ? वहां तो मुख्यमंत्री रहे देवेन्द्र फड़नवीस ने शिंदे सरकार में उपमुख्यमंत्री का पद स्वीकार किया। क्या ये कुछ असहज बात नहीं लगती कि मुख्यमंत्री से उप मुख्यमंत्री पर आ गये। दरअसल ये वक्त की नजाकत को समझकर और बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिये उठाया गया कदम है।
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
मोबा. 9522170700
‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’