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वरिष्ठ पत्रकार चंद्र शेखर शर्मा की बात बेबाक, “लोग जिस्मों पे उतर आए हैं अब चलता बन , तू बहुत देर से पहुंचा है खिलौने वाले ।”
- “ये क्या हाल बना रखा है , आखिर कुछ करते क्यों नही” कभी टीवी पर आने वाला यह विज्ञापन आज महिलाओं व बच्चियों पर होते अत्याचार , उत्पीड़न ,बलात्कार ,मौत और बेबस होती सरकारों से अनायास ही याद आ गया । मणिपुर सहित देश के विभिन्न हिस्सों में बदहाल होती कानून व्यवस्था , बच्चियों व महिलाओं पर होते अत्याचार, महिलाओं की लुटती आबरू ने सोचने पर विवश कर दिया कि आखिर इनकी पीड़ा के लिए क्या एक दिन मोमबत्ती जला , काला फीता बांध, मौन जुलूस निकाल सोशल मीडिया में फ़ोटो अपलोड कर कर्तव्य से इतिश्री पा लाइक्स बटोरना भर रह गया है ? अब तो लोगो का हुजूम और उनकी अंतरात्मा भी जाति और धर्म , झंडे के रंग , सरकारों व राजनैतिक पार्टियां देख कर जस्टिस मांगने लगा है । हमारी बेटियां रोज उत्पीडित हो रही हैं पर हमारी संवेदनाओं को पाला मार गया है । देश का दुर्भाग्य कहे या विडम्बना कि देश की घटिया होती राजनीती और कार्पोरेट घराने के कब्जे में जाते मीडिया हाउस व टीआरपी की बीमारी के चलते बुद्धू बक्से के बुद्धिजीवी और खद्दर में छिपे मतलब परस्तों को ज्योति मौर्य की बेवफाई और सीमा हैदर के ईश्क से फुर्सत ही नही मिल पाती जो मणिपुर , राजस्थान , मध्यप्रदेश , कर्नाटका के हालात को देख बहस कर पाते । मीडिया को तो मणिपुर के हालात से ज्यादा ज्योति मौर्य की बेवफाई और सीमा हैदर के ईश्क की कहानी में दिलचस्पी है तभी तो मणिपुर के हालत पे गप्पू भाई की चुप्पी से भी ज्यादा चुप्पी मीडिया में छाई है मानो मीडिया के मुंह पर फेवीक्विक की दो बूंद टपका दी गई हो। मणिपुर के हालात तो अभी ट्रेलर है ये आग धीरे धीरे और बढ़ेगी ,जिसकी चपेट में देश के सरहदी राज्यों के आने की आशंका लंबे समय से जताई जा रही है । पश्चिम बंगाल के हालात भी किसी से छुपे नही है । रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को वोट के लालच में दामाद बनाने वालो खददरधारियों की करतुते आने वाले समय मे देश प्रदेश के हालात खतरनाक बनाने वाले है ।
वर्तमान हालात पर खददरधारियों व मीडिया की चुप्पी को देख शर्मिंदगी तो नपुंसक होते सिस्टम , सत्ता पक्ष और विपक्ष की राजनीति पर भी आती है जो राजनीति के तवे पे अपनी रोटी सेंकने लाभ हानि देख सक्रिय होते है । राजधानी या बड़े शहरों की तुलना में गांव गरीब की बेटी के साथ हुए अत्याचार मात्र एक कालम की या फटाफट खबरों की भीड़ की एक छोटी सी खबर मात्र बन कर रह जाती है । आक्रोश तो इतना है कि आज सिर्फ “तमाम सबूतों और गवाहों के आधार पर आरोपीयों और चुप्पी साधे तमाश बिनों को सरेराह सजाए मौत दी जाती है लिखूं। माई बाप जाति और धर्म की राजनीतिक खींचतान सीमा हैदर के ईश्क और ज्योतिमौर्य की बेवफाई से फुरसत मिल गई हो तो मणिपुर के हालात पर भी चर्चा और समय खर्चा कर लेते ।
और अंत मे :-
जब चुना ही है उसे कत्ल का हुनर देख कर,
तो मायूस क्यों हो लाशों का शहर देख कर।
#जय_हो 23 जुलाई 2023 कवर्धा(छत्तीसगढ़)