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अखंड सौभाग्य के लिए  सुहागिन महिलाओ ने रखा वट सावित्री का व्रत , बाबा कुटीर में विधि विधान से किया सावित्री वट का पूजन

रायगढ़/ हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व माना गया है ।इस दिन बरगद के पेड़ का पूजन किया जाता है क्योंकि बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना गया है। कहते हैं कि इस दिन व्रत रखने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इसी क्रम में आज एसईसीएल रोड केलो नदी के तीरे स्थित बाबा कुटीर मंदिर परिसर में सुहागिन महिलाओं के द्वारा अपने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना कर अखंड सौभाग्य प्राप्त करने के लिए पूर्ण विधि-विधान से सावित्री वट का पूजन किया गया।
एसईसीएल रोड केलो नदी के किनारे स्थित बाबा कुटीर मंदिर अपने आप में अत्यंत ही अलौकिक सुंदर और हृदय को सुकून देने वाला स्थल है। आजादी के पहले निर्मित इस मंदिर परिसर में वट पीपल और नीम के विशालकाय दरख़्तों की शीतल छाया में स्वयं ईश्वर के मौजूद होने की अनुभूति कराता है। बाबा कुटी मंदिर परिसर में लगभग 70 से 80 वर्ष पुरानी वट- पीपल के विशालकाय दरख्त एक साथ मौजूद हैं। चूंकि सावित्री व्रत पूजन में एक साथ वट- पीपल का विशेष महत्व रहता है जैसा कि यहां बाबा कुटीर में देखने को मिलेंगी। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी बड़ी संख्या में सुहागिन महिलाओं के द्वारा अखंड सौभाग्य के लिए सावित्री वट का व्रत रखकर पूरे विधि विधान से पूजा पाठ किया गया।
इस व्रत को विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और संतान प्राप्ति के लिए करती हैं। कहते हैं सावित्री ने इसी व्रत के प्रभाव से अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से बचाए थे। इस व्रत को करने से पति की उम्र लंबी होती है और उनका दांपत्य जीवन सुखमय होता है। वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर के निर्जला उपवास रखती हैं और विधि विधान के साथ वट यानी बरगद पेड़ की पूजा करती हैं। आज के दिन बरगद पेड़ की पूजा का विशेष महत्व है। कहते हैं कि यमराज ने माता सावित्री के पति सत्यवान के प्राणों को वट वृक्ष के नीचे ही लौटाया था और उन्हें 100 पुत्रों का वरदान दिया था। कहते हैं उसी समय से वट सावित्री व्रत और वट वृक्ष की पूजा की परंपरा शुरू हुई। मान्यता है कि आज के दिन बरगद पेड़ की पूजा करने से यमराज देवता के साथ त्रिदेवों की भी कृपा प्राप्त होती है।।

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